Monday, November 12, 2012

मृणाल पाण्डेय जी के नाम खुला पत्र !


 भास्कर के राष्ट्रीय संस्करण के 24 अक्टूबर 2012 के अंक में 'चौथे स्तम्भ की भूमिका' में मृणाल जी का लेख पढ़ा। जिसमें मृणाल दी ने यह साबित करने की कोशिश की थी कि वर्तमान का अधिसंख्य मीडिया दो बड़ी पार्टियों को छोड़कर टोपी छाप मदारी को प्रमोट करके खतरा मोल ले रहा है। और उन्होंने यहाँ तक लिख डाला था कि मीडिया का एक तबका उस टोपी वाले के द्वारा डाले गए चारे को खाकर जुगाली कर रहा है।
  मृणाल दी वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ-साथ साहित्य जगत में भी अपना परचम फहरा चुकी हैं, तो मेरी कोई विशात नहीं जो उन्हें गलत ठहरा संकू या उनकी नियत पर ऊँगली उठाऊँ । सो मैंने निर्णय लिया कि बाया चिठ्ठाजगत मृणाल दी को खुली चिठ्ठी लिखूँ ,,,,,

 दीदी ,
       विनम्रता पूर्वक एक प्रश्न का उत्तर जानना चाहूँगा कि क्या वजह है कि आज आवाम दूरदर्शन की खबरों के लिए अपना टी,वी, चैनल नहीं बदलता ? ( जिसके ऊँचे ओहादे पर आप खुद हैं )।
  दीदी मैंने आज अगर अक्षरों की कीमियागिरी सीखी है तो आप जैसे प्रबुद्ध लोंगो को पढ़कर । मगर, दुःख कि आपको सत्ता के खरीददारों ने जाने-अनजाने खरीद लिया और आपको पता तक नहीं चला कि आपको पहचान दिलाने वाली आपकी सहचरी लेखनी बिक गई । बिकी हुई लेखनी का क्या हश्र होता है यह आप इमरजेंसी के पैरोकार रहे लेखक, पत्रकार, साहित्यकारों की तरफ देखकर भली-भांति जान जाएँगी । भले ही वो सत्ता के गलियारों से मिलने वाले फायदे उठा रहे हों, मगर जनता के दिलों में उनकी क्या छवि है यह किसी से छुपी नहीं।
 मेरे प्रश्न का उत्तर शायद आप न दें कि ' दूरदर्शन की विश्वसनीयता  कम क्यूँ हुई?' मगर मैं आपको उत्तर बताने की कोशिश करता हूँ-
  मैं पिछली बार गांव गया था, घर में अब दूरदर्शन के अलावा डी टी एच के कारण और भी चैनल मौजूद हैं। एक दिन शाम को घर के एक बुजुर्ग इस बात को लेकर नाराज थे कि टी वी में अब उनके चैनल की खबर देखने को नहीं मिलती यानी की दूर दर्शन की । वो कहते हैं कि वह खाट काँग्रेसी हैं और कांग्रेस की खबर तो केवल दूर दर्शन ही बढियां से दिखाता है, कि सोनिया जी ने आज क्या किया,कहाँ गईं, क्या बोलीं । राहुल जी क्या करने वाले हैं,किस दलित के घर जायेंगे। यह सारी ख़बरें विस्तार से तो केवल दूरदर्शन ही दिखाता है। और घर के लड़के हैं तो आजतक-फाजतक लगाकर बैठे रहते हैं।
  तब मुझे दिल्ली में साथ रहने वाले अपने एक मित्र की याद आ गई, जो अक्सर मजाकिया लहजे में दिल्ली के खास अखबारों को (मैं नाम लिखकर खतरा मोल नहीं लूँगा-आप समझदार हैं) कहा करता था कि भाई आज कांग्रेस का मुखपत्र भी पढ़ लेते हैं। शायद, वह सही था क्योंकि उन्ही अखबारों के सम्पादकीय लेखों ने आपको आज यहाँ तक पहुंचा दिया है जहाँ पर पधारकर आप अपने से मतऐक्य न रखने वालों को जुगाली करने की गाली देती हैं । और हाँ कहते हैं न कि सावन के अंधे को सब हरा ही दिखाई पड़ता है। तभी तो सत्ता में व्याप्त भ्रष्टाचार आपको नजर नहीं आता और अगर कोई मीडिया इसकी जुर्रत करता है तो आपको चारा खाकर जुगाली करता मालूम पड़ता है।
 रही बात केजरीवाल और बाबा के मुहिम की तो जब तक जनता उनके साथ है तब तक मीडिया उनके साथ रहने को मजबूर। क्योंकि निजी मीडिया अपने दर्शकों और पाठकों की बदौलत चलता है न कि सरकार के 'हो रहा भारत निर्माण' के नारे और न ही सत्ता के तिकड़म से प्राप्त पद के चरोहन से। ,,,,, खैर तब तक अपने विचारों से पैरोकार रखने वाले मीडिया के साथ गप्पे लड़ाते हुए मंडी हाउस के नत्थू स्वीट्स में गोल-गप्पे खाइए,,,क्योंकि अभी मौसम आपका है , राजा आपका है,,,,
 और हाँ इस लल्लूलाल के प्रश्न का उत्तर मिल जाये तो जवाब बाया मेल जरूर दीजियेगा , तब तक इन्तजार में,,,,,,,,
               आपका भाई spbaghel85@gmail.com
इस खुले पत्र के जवाब में मृणाल दी की प्रतिक्रिया पढ़ने के लिए कमेन्ट में क्लिक करें ....
 

1 comment:

  1. मेरा मेल मिलते ही मृणाल दी ने पूरे बड़प्पन का परिचय देते हुए तुरंत मुझे प्रतिक्रिया स्वरुप यह मेल किया जिसे आप भी पढें ....

    आदरणीय बंधु

    आपका खुला पत्र पढा | मुझे लगता है कि अपने रोल मौडेल की ही तरह आप भी बात को समझे बिना , हर उस जन पर गरजना आक्षेप जडना शुरू कर देते हैं जो आपकी नज़र में किसी ऊँचे पद पर बैठा है और आपको सहज यकीन है कि वह निश्चय ही सत्ता के साथ मिल कर खा पी रहा है | यह कहना , अभद्र होने के साथ कहीं हर नापसंद जन को एक जैसे कलंक का भागी मानने की दु:खद मानसिक अवयस्कता और देश को लेकर हीन भावना से उपजा डर दिखा रहा है जिसके शिकार आज कई तथाकथित अन्ना समर्थक अनजाने में बन रहे हैं |

    पहले आप के कुछ निराधार आक्षेपों का जवाब | मैं अवैतनिक पद पर हूँ , और सरकार से मुझको किसी तरह का तनख्वाह या भत्ता या कोई और छूट आदि नहीं मिलती | प्रसार भारती का बोर्ड जिसकी मैं अध्यक्ष हूँ मूलत: उपराष्ट्रपति तथा प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष द्वारा नामज़द अपने क्षेत्र में विश्वसनीय रहे लोगों की स्वायत्त सलाहकार संस्था है ( अन्य सदस्यों में मुज़फ्फर अली , वरिष्ठ पत्रकार सुमन दुबे , टाटा स्काई के रिटायर हुए प्रमुख विक्रम कौशिक तथा अहमदाबाद आई आई एम के निदेशक श्री बरुआ हैं ) जो सीधे संसद को रिपोर्ट करती है | मंडी हाउस में मैं नहीं बैठती , पी टी आई की बिल्डिंग में आवश्यकता होने पर ज़रूरी मीटिंग के ही लिये जाती हूँ | न मेरे पास सरकारी गाडी है , न ही मकान | और न ही संस्था के प्रशासनिक कामों में कोई भागीदारी | यह काम कार्यकारी निदेशक श्री जवाहर सरकार तथा उनकी टीम के ज़िम्मे है | बोर्ड काम पर नज़र रखता है तथा उनको सलाह तथा दिशा निर्देश भर देता है |

    जहाँ तक केजरीवाल से मेरा मतभिन्न होने की बात है , हाँ वह है | अपने खुले विरोध के लिये मैं उतनी ही आज़ाद हूँ जितने कि मुझसे मतैक्य न रखने को आप | लेकिन आपको बिना जाने आप पर आरोप लगाने की क्षुद्रता मैं नहीं दिखा सकती | मीडिया की गैरज़िम्मेदारी से किस तरह मीडिया के लोगों के बारे में भी भ्रम बहुत तेज़ी से फैल रहा है , इसका प्रमाण आपका पत्र है |

    केजरीवालगिरी की तहत अब तक एक भी रचनात्मक विज़न सामने नहीं आया सिर्फ नाटकीय अभद्रता से आरोप जडे जा रहे हैं | अब वे कहते हैं जनता को ही कुछ करना चाहिये | यानी वे खुद चुनाव लड कर संसद में विराजें और जनता डंडे खाये सडकों में ! उनका यह कहना और मीडिया का उनको देश भर में यह ज़हर फैलाने में मदद देना दोनो वाहियात अवसरवादिता हैं | और मीडिया का यह भटकाव देश के विकास से ध्यान भटका कर देश को एक घिनौनी छीछालेदर की तरफ लेजाता है | इस बात की सचाई खुद केजरीवाल के गृहप्रदेश हरियाणा में सामने है जहाँ उनकी हंगामी मीटिंगों के बाद भी देश के सबसे ज़्यादा बलात्कार , खाप पंचायतों के प्रतिगामी आदेश और अवैध कन्या भ्रूण हत्या के मामले हो रहे हैं | मैं पिछले तीस सालों से मीडिया तथा ग्रामीण महिलाओं के बीच काम करती रही हूँ इसलिये उपरोक्त दशा के संगीन परिणाम देख सकती हूँ |

    खैर | ईश्वर आपको सुखी रखे और दूसरों का मत उदारता से आत्मसात कर सकने की क्षमता दे यही कामना है

    शुभेच्छु

    मृणाल पाण्डे

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